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जख्मों पर नमक: गरौठा के पूर्व विधायक की संवेदनहीनता की तस्वीर वायरल, गरीबों की पीड़ा पर सियासी दिखावा ?

जख्मों पर नमक: गरौठा के पूर्व विधायक की संवेदनहीनता की तस्वीर वायरल, गरीबों की पीड़ा पर सियासी दिखावा ?


झाँसी के गरौठा विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक बृजेंद्र कुमार व्यास एक बार फिर विवादों में घिर गए हैं। सोशल मीडिया पर उनकी एक तस्वीर तेजी से वायरल हो रही है, जिसमें वे ग्राम देगुआ में आग से प्रभावित दलित परिवारों के बीच कुर्सी पर बैठे हुए नजर आ रहे हैं, जबकि उनके सामने पीड़ित परिवार के लोग ज़मीन पर बैठे हुए हैं। तस्वीर में पूर्व विधायक आराम से पांव पर पांव चढ़ाए बैठे हैं, जबकि दलित गरीबों के चेहरे पर बेबसी और दर्द साफ झलक रहा है।

संवेदनहीनता की पराकाष्ठा पार------


यह तस्वीर सोशल मीडिया पर आलोचना का केंद्र बन चुकी है। कई लोगों ने इसे "संवेदनहीनता की पराकाष्ठा" बताया है और कहा कि यह दृश्य उन लोगों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है जो पहले ही आग से अपना सब कुछ खो चुके हैं। इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या राजनेताओं के लिए गरीबों का दुख केवल एक 'फोटो ऑप' भर रह गया है?

घटना के बाद खुली छत के नीचे जीवन यापन----


कुछ दिन पूर्व देगुआ गांव में आग लगने की एक बड़ी घटना हुई थी, जिसमें कई गरीब और दलित परिवारों के मकान और जीवन का सामान जलकर राख हो गया। पीड़ित परिवार खुली छत के नीचे जीवन यापन को मजबूर हैं। इस बीच जब पूर्व विधायक बृजेंद्र कुमार व्यास पीड़ितों से मिलने पहुंचे, तो लोगों को उम्मीद थी कि वे संवेदना जताएंगे और सहयोग का आश्वासन देंगे। लेकिन जिस तरह से वह कुर्सी पर आराम से बैठे और गरीबों को जमीन पर बैठा देख भी टोकने की ज़रूरत नहीं समझी, उसने उनके व्यवहार पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

जनता की प्रतिक्रिया-----

स्थानीय ग्रामीणों और सोशल मीडिया यूज़र्स ने इस तस्वीर को "शर्मनाक" बताते हुए कहा कि यह सामंती मानसिकता की झलक है। एक यूज़र ने लिखा, "नेता जी का अहंकार गरीबों की तकलीफों से बड़ा है।" वहीं, कुछ लोगों ने प्रशासन से मांग की है कि ऐसे मामलों में जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए।

राजनीतिक प्रतिक्रिया-----

विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को लपकते हुए बृजेंद्र कुमार व्यास पर निशाना साधा है और कहा कि ऐसी मानसिकता वाले नेताओं से जनता को अब सतर्क हो जाना चाहिए।

संवेदनशीलता बनाम दिखावे की राजनीति ?

इस एक तस्वीर ने संवेदनशीलता बनाम दिखावे की राजनीति की बहस को फिर से जीवंत कर दिया है। क्या गरीबों की पीड़ा को समझने और उनके बीच बैठने का साहस नेताओं में है, या वे अब भी अपने "पद" को "संवेदना" से ऊपर समझते हैं — यह सोचने का वक्त है।

रिपोर्टर- भारत नामदेव

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